रविवार, 8 फ़रवरी 2015

उड़िया गया यूरिया, मच रही है लूट


बासुमित्र
यूरिया की कालाबाजारी एवं किल्लत को लेकर बुधवार को मधेपुरा में किसानों का आक्रोश फूट पड़ा. मधेपुरा के मुरलीगंज में स्थिति इतनी भयावह हो गयी कि किसान ट्रक पर लदी खाद बोरियां लूट ले गये. उपद्रव कर रहे किसानों को नियंत्रित करने के लिए एसपी आशीष भारती को खुद मोरचा लेना पड़ा, तब जाकर शाम चार बजे तक हालत काबू में आये. कई महीनों से किसान यूरिया की किल्लत से परेशान थे. बुधवार की अहले सुबह किसानों को सूचना मिली कि दो ट्रक खाद एक एजेंसी के गोदाम पर पहुंचनेवाला है. सुबह तीन बजे ही हजारों की संख्या में किसान एजेंसी की दुकान व गोदाम के पास पहुंच गये. वहां किसानों को पता चला कि ट्रक बेंगा नदी के किनारे लगा हुआ है. इसके बाद किसान कई भाग में बंट कर प्रदर्शन व नारेबाजी शुरू कर दी. एक गुट नदी के किनारे लगे ट्रक के पास पहुंच कर खाद की बोरियां लेकर भागने लगे. सूचना पर थानाध्यक्ष, बीडीओ व सीओ मौके पर पहुंचे और किसानों से पंक्तिबद्ध होकर खाद लेने के लिए समझाया. किसान मान गये. इसके बाद अधिकारियों ने किसानों को बीएल हाइस्कूल के मैदान पर खाद वितरण होने की बात कही. जब किसान बीएल हाइस्कूल पहुंचे, तो वहां खाद का ट्रक नहीं देख आक्रोशित होकर थाने पर हमला बोल दिया.
पंद्रह दिन पहले ही पटवन हो चुका है. खेत में गेहूं मक्का के फसल लहलहा नहीं रहे हैं. किसान यूरिया के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं. लेकिन यूरिया बाजार से गायब है. चौक-चौराहे से लेकर गली मोहल्ला के खाद-बीज की दुकानों पर यूरिया की खोज कर निराश लौट जाते हैं. हर साल खेती के समय यही आलम होता है. जमाखोरी और कालाबाजारी के कारन यूरिया बाजार से गायब हो जाती है और किसान लाचार और बेबस हो जाते है. 335 से 350 रुपये प्रति पैकेट बिकने वाला यूरिया 500 से 550 रुपये की दर से चोरी छिपे बिक रहा है. अपनी खेती और फसल बचाने के चक्कर में किसानों की जेब ढीली हो रही है.
पेशे से मास्टर धमदाहा के चन्द्रशेखर मरांडी ब्लैक में 500 रुपये प्रति बोरा की दर से यूरिया खरीद कर भी खुश हैं. चलो पैसा जो ज्यादा लगा कम से कम फसल तो बच गयी वरना यूरिया के बिना फसल तो मार ही खा जाती.
खोजे ही नहीं मिल रहा यूरिया
सब किसान चंद्रशेखर की तरह खुशनसीब नहीं है. वैसे किसान जिसकी जीविका का प्रमुख्य साधन खेती-किसानी ही है, उसकी स्थिति और ज्यादा खराब है. वे लगातार 15 दिनों से दुकान का चक्कर लगा रहे हैं. गेहूं की खेती कर रहे रामचंद्र युवा किसान है. रामचंद्र बताते हैं की इस साल 5 बीघा में गेहूं बोया था, पटवन हो चुका है. यूरिया के लिए रोज 10 किलोमीटर का सफर तय कर बाजार तक आते हैं. दुकान-दुकान पूछ -पूछ कर थक चुके हैं लेकिन कही जुगार नहीं बैठ रहा है. खेती-किसानी के समय यूरिया की किल्लत होगी तो कैसे खेती होगी. यूरिया के बिना अनाज ही नहीं होगा सब चौपट हुआ जा रहा है.
महीने भर से चल रहा है लुकाछिपी का खेल
ऐसा नहीं है की यूरिया की किल्लत अचानक से सामने आयी है. एक माह से कीमत और स्टॉक का खेल चल रहा है. आम दिनों में 350 रुपये में बिकने वाला यूरिया 450 रुपये में चोर बाजार में बिकना शुरू हो गया था. लोग जरूरत और मजबूरी के नाम पर ऊंची कीमत पर खरीद भी रहे थे. जैसे-जैसे बोने का सीजन ख़त्म हुआ यूरिया का दाम भी सर चढ़ने लगा.

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