मंगलवार, 3 फ़रवरी 2015

79 दिन से खरीद के इंतजार में पड़ा है धान


यह एक किसान का दर्द है. यह किसान पहले पत्रकार था और दिल्ली में अच्छी खासी नौकरी कर रहा था. मगर उसने तय किया कि वह अपने गांव में जाकर खेती करेगा और दुनिया के इस प्राचीनतम पेशे से जुड़कर गौरवान्वित महसूस करेगा. चिन्मयानंद सिंह काफी संवेदनशील युवा हैं और खेती के साथ-साथ फेसबुक पर भी काफी सक्रिय रहते हैं और गांव की मधुरता को हमारे लिए पेश करते हैं. आज उनकी वाल पर एक उदास करने वाली पोस्ट थी, जिसे पगडंडी आपके सामने साझा कर रहा है. इस विडंबना को समझने के लिए कल की पोस्ट किसानों को देश निकाला दे दीजिये हुजूर... को भी पढ़ा जाये.
आज #खलिहानडायरी में दर्द बयां कर रहा हूं। इस तरह बिखरे हुए धान के लिए बिहार सरकार जिम्मेदार है। पिछले 79 दिनों से यह धान पैक्स द्वारा अपनी खरीद का इंतज़ार कर रहा है, और रोज़ ही तारीख बढ़ती जाती है। इधर चूहों और गिलहरियों का खेल जारी है। आज मन चिढ़ा हुआ है अब,पिताजी ने भी अल्टीमेटम दे दिया है कि अपनी जिद छोड़ो और बाज़ार में बेच लो। मेरी जिद पर ही धान को रोककर रखा गया था, नहीं तो कब का ही इसे 1600₹ की जगह 950₹/क्विंटल की दर से बेच दिया जाता। अब लगता है कि इसके कपार में ही नहीं लिखा हुआ है अच्छा दाम पाकर बिकना। आखिर किसान का घर फसल बेच कर ही चलता है ना, कितने दिन तक इंतज़ार करेगा किसान भला? और दो-चार दिन में नहीं होगी अगर धान की अधिप्राप्ति....तो फिर बेच देंगे ऐसे ही। #खलिहानडायरी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें