मंगलवार, 27 जनवरी 2015

ऐसा पर्व जिस दिन ग्वाले घर में दूध नहीं रखते


कल जब पूरा देश गणतंत्र दिवस मनाने में जुटा था, कोसी के ग्वाले "बहरजात" मना रहे थे. यह बहरजात कौन सा पर्व है और इसे क्यों और कैसे मनाया जाता है, क्यों इस दिन ग्वाले अपने घर में दूध नहीं रखते. रघुनी बाबा की क्या कथा है... इस मसले पर पत्रकार सुनील कुमार झा ने फेसबुक वाल पर विस्तार से लिखा है. उस रपट को हम यहां ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर रहे हैं. ताकि आप भी इस अनूठे पर्व के बारे में जान सकें... कुछ ऐसी ही कथा बिसु राउत की भी है, उनकी कहानी पर एक लेखक ने इसी नाम से उपन्यास भी लिखा है. बिसु राउत भी कोसी दियारा के थे. उनकी कहानी फिर कभी...
आज बहरजात (लोकदेवता को प्रसन्न करने का दिन) है. ग्वालों के लोकदेवता रघुनी बाबा को आज प्रसन्न किया जाता है. आज के दिन गाँव के ग्वाले अपने घर में दूध नहीं रखते हैं. किवदंती है कि जो आज के दिन घर में दूध रखता हैं उसको खून की उल्टी होने लगती है. गाँव के ग्वाले आज दूध रघुनी बाबा को अर्पित करते हैं. सामूहिक रूप से खीर बनता है और बाबा को भोग लगाया जाता है. यहाँ दो चमत्कार होते आप देख सकते है जिससे ईश्वर पर आपका भरोसा पक्का हो जाएगा. पहली ... गर्म खीर को चलाने के लिए चम्मच और करछे की जरूरत नहीं होती. रघुनी बाबा जब साधु के उपर आते हैं तो बाबा हाथों से खीर पकाते हैं. खौलते खीर को हाथों से चलाते देखना वाकई रोमांचकारी होता है. दूसरा ... खीर बन जाने पर बाबा दो लोटा जिसमें गर्म खीर भरा होता है लेकर भागते हैं और करीब एक किलोमीटर दूर ब्रह्माथान में चढ़ाते हैं. दोनो हाथों में गर्म खीर का लौटा होता है और बाबा नाचते गाते थान तक जाते हैं. उसके बाद रघुनी बाबा को भोग लगया जाता है और सब प्रसाद ग्रहण करते हैं. सबसे मजेदार बात यह है कि बिना चीनी का बना खीर भी मजेदार होता हैं.
कौन हैं रघुनी बाबा
रघुनी बाबा ग्वालों के लोकदेवता है. बाबा बहुत बड़े गौसेवक थे. उनके पास एक हजार से ज्यादा गायें थीं. बाबा के बारे में किवदंती है कि मुगल बादशाह जब मिथिला आए तो रघुनी को दूध पहुँचाने का आदेश मिला. लेकिन रघुनी बाबा ने मना कर दिया. कुपित होकर बादशाह ने रघुनी को गिरफ्तार करने का आदेश दिया. कहा जाता है कि सिपाही जब रघुनी को लेकर जा रहे थे तब गौशाला की सारी गाय खुद ब खुद उनके पीछे हो गयीं. और साथ हो चला गाँव के सारे गोप. कहते है कि औरंगजेब के सिपाही जब बाबा पर कोड़े बरसाते तो चोट कोड़े मारने वाले को लगता. सिपाहियों ने परेशान होकर मिर्च के धुएँ से भरी कोठरी में बाबा को डाल दिया. कहते हैं मिर्च का धुआँ सुगंधित धुएँ में बदल गया. बाबा को बहुत कष्ट दिया गया लेकिन उनके चेहरे पर मुस्कान बनी रही. अंततः हारकर बाबा की रिहाई का आदेश दे दिया गया. लेकिन बाबा ने अकेले जाने से मना कर दिया. उन्होंने कहा कि जब तक आप सारे बंदियों को रिहा नहीं करेंगे हम जेल नहीं छोड़ेंगे. अंततः सारे कैदियों को रिहा कर दिया गया. कहते हैं उसके बाद मुगल साम्राज्य खत्म हो गया. लोग कहते हैं बाबा को गिरफ्तार करने का फल उन्हें मिला.

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