गंवई इलाकों में सबसे गरीब लोगों के लिए पशुपालन अब भी जीविका का मुख्य स्रोत बना हुआ है। एनएसएसओ की 17 वीं दौर की गणना पर आधारित एक रिपोर्ट के अनुसार जिन खेतिहर परिवारों के पास 0.01 हैक्टेयर या इससे कम रकबे की जमीन है उनमें तकरीबन 20 प्रतिशत परिवार जीविका के लिए मुख्य रुप से पशुपालन पर निर्भर हैं। गौरतलब है कि ऐसे परिवारों में भूमिहीन परिवार भी शामिल हैं।
मखाना उत्पादन पूरी तरह से मछुआरा समुदाय की महिलाओं के हाथों में है। पुरुष इस पूरी प्रक्रिया में बस सहयोग करते हैं। उनका काम केवल तालाब से मखाने के तैयार बीजों को तोड़ना होता है। दरअसल मखाने की पत्तियों, तनों और जड़ों में हजारों नुकीले काँटे होते हैं। ये काँटे बीज तोड़ते वक्त बहुत तेज चुभते हैं। बीज तोड़ने में पूरा हाथ जख्मी हो जाता है। इस काम मे पुरुषों का सहयोग केवल यही तक रहता है। इन बीजों को तोड़ने में तकलीफ ना हो, इसके लिए तकनीक सुविधा लेने का विचार हो रहा है। मिथिलांचल में पान और तालाब के बाद अगर कोई पहचान है तो वह है ‘मखाना’। मखाना मिनरल और न्यूट्रियंस से भरपूर होता है। इसके सेवन से कई फायदे मिलते हैं। मिथिला में पैदा होने वाला मखाना एक और लाभ पहुँचा रहा है। वह लाभ है महिलाओं को सशक्त करने का। मछुआरा समुदाय से ताल्लुक रखने वाली महिलाएँ मखाना का उत्पादन कर आधी आबादी की मेहनत, लगन का उदाहरण पेश कर रही हैं।
फ्लोराइड से ग्रस्त ग्रामीण व बच्चे नई दिल्ली (भाषा)। देश की 14,131 बस्तियों के फ्लोरोसिस से प्रभावित होने का जिक्र करते हुए सरकार ने शुक्रवार को कहा कि साल 2017 तक ऐसी बस्तियों में सुरक्षित पेयजल सुविधा उपलब्ध करा दी जाएगी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें