सोमवार, 7 अक्तूबर 2013

डायन प्रथा के खिलाफ छुटनी और पूनम जगा रहीं आशा


डायन प्रथा जैसी मनहूस परंपरा के कारण बदनाम झारखंड में दो महिलाएं उम्मीद की किरण बनकर उभरी हैं. कभी इन महिलाओं को उनके इलाके के लोगों ने प्रताड़ित किया था, मगर आज ये दोनों राज्य की उन लाखों महिलाओं के लिए आसरा बनकर उभरी हैं जिन्हें समाज के लोग डायन कहकर प्रताड़ित करते हैं. इनमें से एक सरायकेला की छुटनी महतो हैं तो दूसरी रांची की पूनम टोप्पो. इनके काम-काज को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली है और भारत सरकार के फिल्म प्रभाग की ओर से इनके संघर्ष और योगदान पर एक डॉक्यूमेंटरी फिल्म विच डॉटर का निर्माण किया गया है, जिसका प्रदर्शन अक्तूबर में मुम्बई में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में किया जायेगा.
नाटकों के जरिये पूनम की मुहिम
रांची के नामकुम प्रखंड के नया बुसूर गांव की रहने वाली पूनम टोप्पो ने बचपन से नाटकों के जरिये इस क्रूर परंपरा के खिलाफ मुहिम छेड़ रखा है. उनके प्रसिद्ध नाटक गुड़काइन(टोटका) डहर के अब तक हजार से अधिक शोज हो चुके हैं. इन नाटकों के जरिये गांव में डायन प्रथा के अंधविश्वास का परदाफाश करने की कोशिश की जाती है. फिलहाल आशा नामक संगठन की चेयरपरसन पूनम बताती हैं कि नाटक में जिस महिला को डायन करार दिया जाता है, उसकी भूमिका वे खुद निभाती हैं. नाटक के बाद वे गांव की महिलाओं से संवाद भी करती हैं.
नाटक के बाद मिलती हैं पीड़ित महिलाएं
पूनम बताती हैं कि अक्सर नाटक के बाद अकेले में कुछ महिलाएं जरूर उनसे मिलने आती हैं और उन्हें बताती हैं कि किस तरह गांव समाज के लोग उन्हें डायन कह कर प्रताड़ित करते हैं. इसके बाद वे अपनी संस्था के जरिये उस महिला की मदद करने की कोशिश करती हैं.
बचपन में ही गुजर गये माता-पिता
एचइसी कर्मी की पुत्री पूनम टोप्पो के माता-पिता बचपन में ही गुजर गये थे. इसके बाद से वे अपनी दादी के साथ अपने गांव नया बुसूर में अपने पांच भाई बहनों के साथ रहने लगीं. छोटे भाई बहनों की देखभाल के साथ-साथ उन पर कई और जिम्मेवारियां थीं. मगर उनके परिवार में किसी सदस्य पर डायन होने इल्जाम लगने के कारण गांव के लोग उन्हें संदिग्ध नजर से देखते थे. लोगों की निगाह में नफरत का भाव बचपन से देखने के कारण पूनम हमेशा से इस कुप्रथा के खिलाफ आंदोलन चलाना चाहती थीं.
नाटक के जरिये की शुरुआत
इसकी शुरुआत उन्होंने शराब नामक नाटक से की. उन्होंने स्वयं सहायता समूहों के जरिये महिलाओं को एकजुट करना शुरू किया और उन समूहों में अंधविश्वास के खिलाफ आवाज उठने लगे. इस बीच उन्होंने रांची विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री ली. अपने अभियान के दौरान ही वे आशा संस्था के संपर्क में आयीं और आज वे संस्था की चेयरपरसन हैं. उनके अभियान की सराहना करते हुए 2004 में उन्हें बेस्ट चेंजमेकर की उपाधि से नवाजते हुए पुरस्कृत किया गया. यह पुरस्कार उन्हें तत्कालीन युवा एवं खेल मंत्री सुनील दत्त के हाथों ऑक्सफेम संस्था के द्वारा दिया गया. विच डॉटर के अलावा नेशनल ज्योग्राफिक ने भी उनके योगदान पर केंद्रित एक फिल्म तंत्र का निर्माण किया है. फिलहाल पूनम की शादी हो चुकी है और वे अपने छोटे से बच्चे के साथ आशा संस्था की कई जिम्मेदारियों को संभालती हैं.
डायन करार दी गयी महिलाओं का संगठन
सरायकेला-खरसावां जिले में 30-35 महिलाओं का एक नेटवर्क है. ये महिलाएं अक्सर मिलती-जुलती रहती हैं और अपने दुख-दर्द की चर्चा करती हैं. इस नेटवर्क की संयोजिका 40 वर्षीय छुटनी महतो हैं. यह नेटवर्क उन महिलाओं का है जिन्हें उनके गांव-समाज के लोगों ने डायन करार दिया था और उन्हें गांव से भगाना चाहते थे. मगर छुटनी महतो की सक्रियता के कारण इन महिलाओं के साथ कोई बुरा हादसा नहीं हो पाया और अब वे लगातार इस नेटवर्क के सहारे एक दूसरे का हौसला बढ़ाती हैं.
खुद झेली है पीड़ा
छुटनी भी आशा संस्था से जुड़ी हैं, और इस नेटवर्क का संचालन वे आशा के सहयोग से ही करती हैं. मगर छुटनी ने अपने नेटवर्क से जुड़ी महिलाओं को जिस तरह सहारा दिया उतना सहारा उन्हें नहीं मिल पाया था. उन्हें जब उनके गांव और समाज के लोगों ने डायन करार दिया था तो उन्हें और उनके तीन छोटे बच्चों को सहारा देने वाला कोई नहीं था. उनके संबंधियों और पड़ोसियों ने उन्हें जमकर प्रताड़ित किया और उन्हें मैला पीने पर भी मजबूर किया. बाद में किसी तरह वह अपने बच्चों के साथ इस ट्रैप से बचकर निकलने में कामयाब हुईं.
संस्था के तौर-तरीके सीखे
बाद में उन्हें आशा संस्था का सहारा मिला और उन्होंने फैसला किया कि उनके साथ जो कुछ अन्याय हुआ वे और किसी दूसरे के साथ ऐसा होने नहीं देंगी. वे तब से इसी अभियान में जुट गयी हैं. ठेठ गांव की महिला छुटनी के लिए स्वयंसेवी संगठन के माहौल में और कार्यप्रणाली में खुद फिट कर पाना आसान नहीं था. मगर उन्होंने खुद को बड़ी आसानी से इस सिस्टम में ढाल लिया. अब वे अपने काम-काज के दौरान काफी सहज नजर आती हैं. उनके संघर्ष को भी विच डॉटर फिल्म में विस्तार से दिखाया गया है.
आशा संगठन
इन दोनों महिलाओं के इस संघर्ष के पीछे रांची की संस्था आशा का बड़ा हाथ है. एसोसियेशन फॉर सोशल एंड ह्यूमन अवेयरनेस नामक यह संस्था पिछले 13-14 सालों से महिलाओं के खिलाफ हिंसा के विरोध में सक्रिय है. पूनम और छुटनी महतो जैसी महिलाएं इस संस्था की रीढ़ हैं. डायन प्रताड़ना के खिलाफ संस्था लगातार संघर्ष कर रही है. आशा के सचिव अजय भगत कहते हैं कि हमने महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामले में जो भी सफलता हासिल की है उसकी हकदार ये दोनों महिलाएं हैं.

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